बायोप्सी से लेकर हर्निया, हार्ट सर्जरी और ब्रेन सर्जरी में आजकल रोबोटिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, इसके अलावा अब घुटनों और कूल्हों की जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी भी रोबोटिक सिस्टम की मदद से की जा रही है, लेकिन इसे लेकर लोगों के बीच कुछ मिथक भी नजर आते हैं, जिसके चलते वो जरूरत होने के बावजूद रोबोटिक जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने से बचते हैं, डॉक्टर रमणीक महाजन बता रहे हैं कि इससे जुड़े क्या मिथक हैं और उनकी क्या सच्चाई है। डॉक्टर महाजन मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी अस्पताल साकेत, नई दिल्ली में सीनियर डायरेक्टर व जॉइंट रिप्लेसमेंट यूनिट (नी एंड हिप) के सीनियर डायरेक्टर हैं।
मिथक : रोबोट करता है सर्जरी
तथ्य : रोबोट सर्जरी का मतलब ये नहीं है कि सर्जरी रोबोट ही करता है, इस तरह की सर्जरी में रोबोट सिर्फ डॉक्टर की मदद करता है ताकि ऑपरेशन पूरी सटीकता से हो सके। रोबोट की मदद से डॉक्टर एकदम सही कट लगा पाते हैं और ट्रांसप्लांटेशन कर पाते हैं। अगर डॉक्टर रोबोट को न चलाए तो वो कुछ नहीं कर सकता। यानी पूरी सर्जरी डॉक्टर ही करते हैं, बस वो इसमें रोबोट की मदद लेते हैं।
मिथक: सर्जरी के वक्त डॉक्टर मरीज के आसपास नहीं होता
तथ्य : रोबोटिक सर्जरी के बाकी मामलों में जहां मरीज से दूर रखे कंसोल के जरिए रोबोट को कंट्रोल करते हैं, जॉइंट रिप्लेसमेंट के मामले में स्थिति उससे पूरी तरह अलग रहती है. यहां रोबोट बस डॉक्टर का एक विस्तार होता है, वो खुद में सर्जन की भूमिका नहीं निभाता।
लोगों को एक बात जो सबसे ज्यादा डराती है वो ये कि रोबोट एक मशीन है, कहीं ये खराब हो गया तो। इसके जवाब में आपको बता दें कि तकनीक ने बहुत तरक्की कर ली है, और बहुत ही उच्च मानकों का उपयोग करके इस प्रणाली को विकसित किया है। इसके अलावा, सर्जन रोबोट का उपयोग करने से पहले उन्हें दोबारा जांचता है। ऑपरेशन के दौरान पूरी तरह से कंट्रोल सर्जन का होता है। इसके अलावा इसमें सेफ्टी फीचर्स भी हैं जिससे किसी तरह का खतरा नहीं होता।
मिथक : सभी रोबोटिक तकनीक एक जैसी होती हैं
तथ्य : हर तकनीक दूसरे से अलग होती है, इसलिए टेक्नोलॉजी की क्लिनिकल हिस्ट्री को समझना बहुत जरूरी होता है, इस तकनीक की मदद से की गई सर्जरी और क्लिनिकल लीगेसी जैसी चीजें समझकर ही इसे चेक किया जा सकता है।
मिथक : रोबोटिक सर्जरी से बेहतर है परंपरागत सर्जरी
तथ्य : परंपरागत नी-रिप्लेसमेंट सर्जरी में सर्जन पुराने टूल्स का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में ये सर्जन की काबिलियत पर निर्भर करता है कि वो किस अच्छे ढंग से उनको उपयोग में ला सके। इसमें सर्जिकल प्लानिंग भी वहीं सर्जरी टेबल पर की जाती है। जबकि रोबोटिक प्रक्रिया में सर्जन ये प्लानिंग ऑपरेशन थिएटर में एंट्री लेने से पहले ही कर सकते हैं। उनके पास इसके लिए 3-डी सीटी आधारित वर्चुअल प्लान होता है, जिससे मरीज के घुटने और बॉडी संरचना की तस्वीर मिल जाती है। इसका फायदा ये होता है कि डॉक्टर बिना किसी चूक या गलती के इम्प्लांटेशन कर पाते हैं।
इसका एक और फायदा ये होता है कि भले ही इम्प्लांटेशन की जरूरत के हिसाब से कट का साइज बड़ा हो लेकिन रोबोटिक सर्जरी में टिशू का डैमेज बहुत कम होता है और जोड़ों के नैचुरल स्ट्रक्चर पर भी कम असर होता है। इसमें दर्द बहुत कम होता है और मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है। ये ज्यादा महंगा भी नहीं है। सर्जरी में इस्तेमाल होने वाली चीजों के हिसाब से अस्पताल सरचार्ज लगाते हैं जो काफी कम होता है।