ब्रेन स्ट्रोक मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और इससे लंबे समय के लिए विकलांगता भी होती है। हर साल करीब 16 लाख भारतीय लोग ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। भारत में हर 20 सेकंड में ब्रेन स्ट्रोक का एक केस आता है. ब्रेन अटैक से हर साल 6 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हो जाती है। जो लोग जीवित रहते हैं, उनमें से भी करीब 30% लोगों को गंभीर और स्थायी समस्या झेलनी पड़ती है। मैक्स अस्पताल पटपड़गंज (नई दिल्ली) में न्यूरोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर विवेक कुमार ने स्ट्रोक के बारे में हर पहलू पर जानकारी दी है।
हालांकि, ये बीमारी ज्यादा उम्र के लोगों की समझी जाती है। भारत में ब्रेन स्ट्रोक के कुल मामलों में से 20-30 फीसदी ऐसे होते हैं जिनमें मरीज की उम्र 45 साल के कम होती है। ब्रेन स्ट्रोक को कई बार ब्रेन अटैक भी कहा जाता है, ऐसा तब होता है जब दिमाग में खून का फ्लो रुक जाता है। वैसे जब स्ट्रोक होता है, तो ऑक्सीजन और पोषक तत्वों से वंचित होने के कारण उस क्षेत्र में दिमाग की कोशिकाएं तुरंत मरने लगती हैं।
स्ट्रोक के मुख्यत: दो प्रकार होते हैं। पहला, जिसे इस्केमिक स्ट्रोक कहा जाता है। इसमें ब्लड क्लॉट के कारण ब्रेन की धमनी ब्लॉक हो जाती हैं। स्ट्रोक कुल मामलों में लगभग 80 प्रतिशत केस इस्केमिक के होते हैं। दूसरा, जिसे हेमोरेजिक यानी रक्तस्रावी स्ट्रोक कहा जाता है। जब ब्रेन में रक्त वाहिका फट जाती है और खून बहता है तब ये स्ट्रोक आता है। कुल मामलों के लगभग 20 प्रतिशत केस इसी स्ट्रोक के होते हैं।
स्ट्रोक के लक्षण अलग-अलग होते हैं क्योंकि स्ट्रोक अचानक होते हैं। इसमें BEFAST को याद रखने की जरूरत होती है। इसके अलग-अलग मतलब होते हैं। जैसे B यानी संतुलन का अचानक बिगड़ जाना, E यानी एक या दोनों आंखों में अचानक धुंधलापन, F यानी चेहरे निढाल हो जाना, A यानी हाथ और या पैर की कमजोरी, S यानी बोलने में समस्या और T यानी समय पर समय इलाज। स्ट्रोक आने पर थ्रोम्बोलिसिस के लिए 4.5 घंटे और मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी के लिए 6-24 घंटे का पीरियड बेहद अहम होता है।
इस्केमिक स्ट्रोक का इलाज —– शुरुआती पहचान : इलाज की पहली कड़ी स्ट्रोक के लक्षणों की शुरुआती पहचान है, क्योंकि इसका रोल सबसे महत्वपूर्ण होता है। समय पर लक्षण नजर आने से इलाज जल्दी मिल जाता है, जिससे रिजल्ट पॉजिटिव आते हैं।
क्लॉट हटाने वाली दवा : खून के थक्के हटाने के लिए दवाएं दी जाती हैं। जैसे थ्रोम्बोलिसिस के लिए टीपीए का इस्तेमाल होता है जिससे 30-50% तक बेहतर रिजल्ट आने की संभावना बढ़ जाती है. यह इलाज लक्षण शुरू होने के 4.5 घंटे के अंदर किया जा सकता है, और जितनी जल्दी उतना ही बेहतर होता है।
क्लॉट-रिट्रीवल ट्रीटमेंट : स्ट्रोक के इलाज में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी भी की जाती है। इसके जरिए बड़ी धमनी में ब्लॉक के मामले में स्टेंट-असिस्टेड क्लॉट हटाने पर जोर दिया जाता है। इससे अच्छे रिजल्ट आने की संभावना 50% तक बढ़ जाती है।
रिहैबिलिटेशन : यह मरीज की सेहत सामान्य करने के लिए एक बहुत ही जरूरी हिस्सा है। इसमें स्ट्रोक के बाद बोलने की क्षमता को बहाल कराने की कोशिश की जाती है और शारीरिक सक्रियता को भी सुधारने का प्रयास किया जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक से बचाव —–
ब्रेन स्ट्रोक भले ही अचानक आने वाली एक जानलेवा मुसीबत हो, लेकिन इसके 90 फीसदी मामलों से बचाव किया जा सकता है।
आलस वाली लाइफस्टाइल : एडल्ट लोगों को कम से कम 30 मिनट की मॉडरेट फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए।
हाइपरटेंशन : स्ट्रोक से बचाव के लिए हाई ब्लड प्रेशर पर काबू रखना बेहद जरूरी होता है। इसके लिए हाइपरटेंशन से बचना चाहिए।
डिस्लिपिडेमिया : एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का हाई लेवल भी स्ट्रोक का कारण बन सकता है। ऐसे में जरूरी है कि रेगुलर एक्सरसाइज करें, डाइट पर नियंत्रण रखें और अगर जरूरी हो तो लिपिड-कम करने वाली दवाओं का सेवन करें, ताकि कोलेस्ट्रॉल का लेवल भी मैनेज हो सके।
सिगरेट/धूम्रपान : धूम्रपान पीने से इस्केमिक स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है और हेमोरेजिक स्ट्रोक का रिस्क चार गुना हो जाता है।
शराब : शराब का ज्यादा सेवन हर साल विश्व स्तर पर 1 मिलियन से अधिक स्ट्रोक के मामलों का कारण बनता है।
डायबिटीज : स्ट्रोक के रिस्क को कम करने के लिए जरूरी है कि एक्सरसाइज, डाइट और दवाओं के माध्यम से डायबिटीज को कंट्रोल में रखा जाए।
वार्निंग साइन या टीआईए : ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक (टीआईए) का मूल्यांकन जरूर किया जाना चाहिए। ये स्ट्रोक के लक्षणों का ही एक रूप होता है, जो मिनटों में ठीक भी हो जाता है।
डाइट : लिमिटेड मांस और मछली के साथ हरी सब्जी वाला खाना काफी फायदेमंद होता है। इससे स्ट्रोक का रिस्क कम रहता है।
दिल की बीमारी : अगर किसी को दिल की बीमारी है, दिल के वाल्व में समस्या है, हार्ट बीट सही नहीं रहती हैं, हार्ट चैंबर का साइज ज्यादा हो गया है तो इस सबसे खून के थक्के जम सकते हैं और फिर ब्रेन के अंदर या उससे जुड़ी रक्त वाहिकाओं के ब्लॉक होने का खतरा रहता है। इस तमाम चीजों का ध्यान रखते हुए सही इलाज स्ट्रोक के खतरे को कम कर सकता है।