
मेरठ। रेडिएशन यानी हाई एनर्जी एक्स-रे का उपयोग करके कैंसर का इलाज, अब पहले से कहीं अधिक उन्नत और प्रभावी हो गया है। पारंपरिक रेडिएशन थेरेपी से जुड़ी एक प्रमुख समस्या इसके दुष्प्रभाव थे, जो कई बार लंबे समय तक बने रहते थे। लेकिन आज की एडवांस्ड रेडियोथेरेपी तकनीकों जैसे इमेज-गाइडेड रेडिएशन थेरेपी, स्टीरियोटैक्टिक रेडियोथेरेपी, रेस्पिरेटरी गैटिंग या ट्रैकिंग ने कैंसर के इलाज को नया आयाम दिया है।
इन आधुनिक तकनीकों के कई लाभ हैं: इलाज की सटीकता अब सबमिलीमीटर स्तर तक पहुंच चुकी है, जिससे ट्यूमर को ज्यादा प्रभावी ढंग से टार्गेट किया जा सकता है और परिणाम बेहतर होते हैं। रेडिएशन से होने वाले दुष्प्रभाव भी काफी कम हो गए हैं। इलाज के सत्र छोटे हो गए हैं जिससे मरीजों की सुविधा और आराम बढ़ा है। स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी या बॉडी रेडियोथेरेपी जैसी तकनीकों से एक ही दिन या 3-5 दिनों में इलाज संभव है। अब ऐसे ट्यूमर का इलाज भी संभव है जो सर्जरी से नहीं हटाए जा सकते या शरीर के कई हिस्सों में फैले मेटास्टेसेस को एक साथ टार्गेट किया जा सकता है। इसके अलावा, एक बार रेडिएशन लेने के बाद भी जरूरत पड़ने पर दोबारा रेडिएशन देना अब संभव हो गया है। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली में क्लिनिकल एडमिनिस्ट्रेटर और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डॉ. राशि अग्रवाल ने बताया कि “अक्सर माना जाता है कि रेडिएशन केवल पेलिएटिव (लक्षणों को कम करने वाला) इलाज है, लेकिन सच्चाई यह है कि रेडिएशन अकेले या अन्य उपचार विधियों के साथ मिलकर मरीज को पूरी तरह ठीक करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। आज की सबमिलीमीटर सटीकता के कारण फेफड़े, हड्डियों या मस्तिष्क में सीमित मेटास्टेसेस को भी प्रभावी ढंग से ठीक किया जा सकता है। एक और आम धारणा यह है कि रेडिएशन थेरेपी हमेशा सर्जरी या कीमोथेरेपी के बाद ही दी जाती है, जबकि वास्तव में हेड एंड नेक कैंसर, नाक (नासोफैरिंक्स), गले, इसोफेगस, गुदा, सर्विक्स, फेफड़ों के एडवांस्ड स्टेज कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर जैसे मामलों में रेडिएशन थेरेपी को इलाज की मुख्य विधि के रूप में भी अपनाया जाता है।“ डॉ. राशि ने आगे बताया कि “यह भी एक भ्रम है कि यदि मरीज की मास्टेक्टॉमी (स्तन हटाने की सर्जरी) हो चुकी है, तो रेडिएशन की आवश्यकता नहीं होती। हकीकत यह है कि यदि ट्यूमर का आकार 5 सेंटीमीटर से बड़ा हो, लिम्फ नोड्स में कैंसर फैल चुका हो, या सर्जरी में पर्याप्त लिम्फ नोड्स नहीं हटाए गए हों, तो रेडिएशन जरूरी हो जाता है। वहीं, अगर सिर्फ गांठ हटाने वाली सर्जरी (ब्रेस्ट-कंजरविंग सर्जरी) की गई है, तो कैंसर के दोबारा होने से बचाने के लिए रेडिएशन अनिवार्य होता है। अच्छी बात यह है कि आधुनिक रेडिएशन तकनीकें दिल और फेफड़ों को नुकसान नहीं पहुंचातीं और यह इलाज अब ओपीडी आधार पर, बिना अस्पताल में भर्ती किए, केवल 1 से 3 सप्ताह में पूरा किया जा सकता है। साथ ही, मास्टेक्टॉमी के बाद रेडिएशन से जुड़े दुष्प्रभाव आमतौर पर ब्रेस्ट-कंजरविंग सर्जरी की तुलना में कम होते हैं।“ एक और मिथक यह है कि रेडिएशन से त्वचा जल जाती है। वास्तव में त्वचा पर असर केवल तब होता है जब रेडिएशन सीधे त्वचा को टार्गेट करता है, जबकि पेट, स्त्री रोग या पाचन तंत्र से जुड़े कैंसर में त्वचा प्रभावित नहीं होती। अंत में, यह कहना कि सर्जरी की तुलना में रेडिएशन से इलाज की सफलता कम होती है, सही नहीं है। इलाज की सफलता मुख्य रूप से कैंसर के स्टेज पर निर्भर करती है, ना कि केवल इलाज की विधि पर। अक्सर रेडिएशन थेरेपी उन मरीजों को दी जाती है जिनका कैंसर पहले से ही उन्नत अवस्था में होता है, जिससे भ्रम पैदा होता है कि इसका परिणाम कमजोर है। आज हम रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां तकनीकी उन्नति ने इलाज को न सिर्फ अधिक प्रभावी, बल्कि मरीजों के लिए आरामदायक और सुरक्षित भी बना दिया है।