
– योगीपुरम में आयोजित देवी भागवत कथा का समापन
मेरठ। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने देवी भागवत कथा के समापन के मौके पर कहा कि यह संसार अनादि है, जब- जब देवी- देवताओं व मनुष्यों पर विपत्ति आती है सब देवी परांबा राजराजेश्वरी की सेवा करते हैं। जब भी किसी को पीड़ा होती है तो सब मां को ही याद करते हैं। मां कभी काली, कभी चंडी व कभी तारा बनती है, उद्देश्य केवल अपने बच्चों का कष्ट हरने का होता है। उन्होंने कथा सुनाते हुए बताया कि दुर्गम नामक राक्षस ने तपस्या की और ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने कहा तुम्ही बताओं कैसे मरोगे। दुर्गम ने कहा कि हम देवता के सिवाय किसी से न मारे जाएं। लेकिन मुझे वद भी चाहिए और वह केवल हमारे पास रहेंगे। ब्रह्मा जी ने कहा तथास्तु और वेद दुर्गम के पास चले गए और उसी समय सभी ब्राह्मणों की स्मृति से भी गायब हो गए। मंत्रों के अभाव में ब्राह्मणों ने आहुतियां देना बंद कर दिया, जिससे सारे देवता प्रभावहीन हो गए। वर्षा बंद हो गई अकाल पड़ने लगा। मनुष्य भूख-प्यास से निढाल कंकाल जैसे हो गए। देवताओं ने मां परांबा की आराधना की। मां ने दुर्गा का रूप धारण कर दुर्गम का विनाश कर दिया। सबकी ऐसी हालत देख मां का दिल भर आया और उन्होंने सबको एक साथ देखने के लिए सताक्षी (अनंत) रूप धारण किया। मां ने जैसे ही सबको करूणा से देखा, मां के नेत्रों से अनंत आंसूओं की धारा बहने लगी और चारों तरफ करूणा की वर्षा होने लगी। इस शाक उत्पन्न हो गया और देवी का नाम शाकंभरी हो गया। शंकराचार्य जी ने बताया कि सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तब मां काम आती है। राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मौत हो गई, उनकी मुक्ति का कोई उपाय नहीं मिला तो मां गंगा ने कृपा की और गंगा स्वर्ग से धरती पर आ गई। कोई भी ऊपर से नीचे नहीं आना चाहता, लेकिन गंगा ने यह काम किया। धरती भी परांबा राजराजेश्वरी ही है। इसका एक नाम क्षमा भी है। उन्होंने बताया कि धरती के दो रूप हैं। अचल रूप धऱती व चल रूप गोमाता। रामचरित मानस मे लिखा है, जब धरती पर भार बढ़ गया तो सारे देवता भगवान के पास गये, उसमें धऱती भी गाय का रूप धारण कर पहुंची। भगवान को करूणा आ गई और राम के रूप में धरती पर आ गए। भागवत में भी लिखा है भगवान श्रीकृष्ण के रूप में आए और पृथ्वी का भार उतारा। शंकराचार्य जी ने कहा कि धरती पर कब्जा करना बलात्कार की श्रेणी में आता है और कब्जा करने वाले को बलात्कार का पाप लगता है। उन्होंने सत्यवान व सावित्री की कथा सुनाते हुए बताया कि किस तरह सावित्री यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ले आई। साथ में खुद के लिए 100 पुत्रों व 100 भाइयों का वरदान मांगा। उन्होंने बताया कि दक्षिणा भी देवी का ही रूप है यदि दक्षिणा तत्काल दे दी जाए तो छह गुना फल मिलता है और देने में देर करने से कई गुना बढ़ जाती है। उन्होंने दंडी सन्यासियों को साक्षात नारायण स्वरूप बताया। शंकराचार्य जी ने सभी से कहा कि धार्मिक मामले में कोई भ्रम हो जाए तो उसे स्पष्ट करने का हम वचन देते हैं। शंकराचार्य जी ने माता परांबा की तरफ से सबको खूब-खूब आशीर्वाद दिया। देवेन्द्र पांडेय जीने कहा कि धर्मयुद्ध में जो धर्म के साथ आकर खड़ा नहीं होता है तो यह मान लिया जाता है कि वह अधर्म के साथ खड़ा है। आशुतोष डिमरी जी ने बताया कि बद्रीनाथ के पट 4 मई को खुलेंगे। राशि वैष्णव जी ने गौमाता का चित्र भेंट किया। अमेरिका से विश्वनाथ ने परम धर्म की वाणी नामक पुस्तक बनाकर भेजी, साध्वी पूर्णाम्बा जी ने सनातन के लिए एक ऐसा कैलेंडर बनाया, जिसमें हिन्दी वर्ष के हिसाब से वर्षभर का आवश्यक संकलन है। महाराजश्री ने दोनों का विमोचन किया। बागपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद राजकुमार सांगवान जी ने महाराज श्री से आशीर्वाद लिया। काशी के कृष्ण कुमार तिवारी जी ने अपनी टीम के साथ शानदार भजनों की प्रस्तुति देकर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। कथा में आशुतोष डिमरी, दिनेश डिमरी, प्रकाश रावल, इटली से ज्ञानीजी, रोमानिया से शिवांगी, सोबीर नागर, बबलू गुर्जर, नवाब सिंह लखवाया, भारत भूषण प्रजापति, रविन्द्र शर्मा, संजय वर्मा, सुरेन्द्र किनौनी, हितेश गुर्जर, वैभव नागर, अर्पण, स्पर्श, अमित भाटी, पायल, सुमन, चीनू, प्रभा, उमा आदि मौजूद रहे।