5 साल से कम उम्र के बच्चों में फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने का खतरा 7 गुना ज्यादा रहता है : डॉ. उमंग अरोड़ा

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 6 महीने से 5 साल तक की उम्र के बच्चों को हर साल टीका लगवाने का सुझाव दिया है।  बच्चों में पूरे साल फ्लू का खतरा रहता है, विशेष रूप से सर्दियों में और मानसून में यह खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।  टीकाकरण के बाद शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने में करीब 2 हफ्ते का समय लग जाता है , इसलिए मानसून या सर्दियों का मौसम आने के 2 से 4 हफ्ते पहले टीका लगवा लेना चाहिए।  5 साल से कम उम्र के बच्चों में न केवल फ्लू के कारण ज्यादा परेशानी होने का खतरा रहता है , बल्कि वे अन्य लोगों को संक्रमित भी कर सकते हैं।

सालाना 4-इन-1 फ्लू टीकाकरण की जरूरत को लेकर पीडियाट्रिक वर्ल्ड क्लीनिक, मेरठ के कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन एवं नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. उमंग अरोड़ा ने कहा, ‘फ्लू के कुछ लक्षण वैसे तो सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे होते हैं, लेकिन पांच साल से कम उम्र के बच्चों में इस संक्रमण से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। बच्चों के बचाव का सबसे अच्छा तरीका है उन्हें सालाना फ्लू से बचाव का टीका लगवाना। 4-इन-1 फ्लू का टीका छह महीने से पांच साल की उम्र के बच्चों को लगवाया जा सकता है। यदि बच्चे को पहले टीका नहीं लगाया गया हैतो उन्हें फ्लू के टीके की दो डोज लगवानी चाहिए। अगर नियमित तौर पर टीका लगवा रहे हैं, तो सालाना एक डोज लगवानी चाहिए।’

फ्लू इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होता है और यह नाक, गले व फेफड़े पर असर डालता है।  इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं खांसी, बुखारी, गले में खराश, थकान, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द।  संक्रमित लोगों के बोलने, छींकने या खांसने से वायरस आसानी से दूसरों में पहुंच सकता है। सांसों के साथ बाहर आने वाले ड्रॉपलेट प्रत्यक्ष तौर पर स्वस्थ लोगों तक पहुंच सकते हैं या किसी सतह पर गिरकर वहां से किसी अन्य को संक्रमित कर सकते हैं, जैसे किसी दरवाजे पर वायरस हो सकते हैं, जिसे कोई स्वस्थ व्यक्ति छूकर वायरस के संपर्क में आ सकता है।  ज्यादातर लोग कुछ दिन या हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन 5 साल से कम उम्र के बच्चे, खासकर 2 साल से कम उम्र के बच्चे और जिन बच्चों को पहले से कोई गंभीर बीमारी हो, उनमें फ्लू के कारण बहुत ज्यादा बीमार पड़ने का खतरा रहता है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है।