

प्रथम दिवस का शुभारम्भ श्री महेंद्र सिंह गोयल, सूर्यप्रकाश उनियाल, निरमेश देवी द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। कथा व्यास जी ने बताया कि एक सुखी ब्राह्मण थे, जिनका नाम था आत्मदेव परंतु उन्होने एक संत के पास जाकर ईश्वर भक्ति के बजाय एक पुत्र की कामना कर डाली, जिसके परिणाम स्वरूप उनके जीवन में धुंधकारी जैसे कुपुत्र का आगमन हुआ। वही दूसरी ओर उनके घर में गौ माता द्वारा भी एक संतान ने जन्म लिया जिसका शरीर मानव जैसा व कान गौ जैसे होने के कारण गौकर्ण नाम रखा गया। जहा धुंधकारी एक विनाशकारी संतान थी वही दूसरी ओर गौकर्ण प्रभु का अनन्य भक्त था।धुंधकारी अपने कुकर्मों द्वारा अपने माता पिता के अंत का कारण बन गया और कुछ समय पश्चात वह भी भयंकर मृत्यु को प्राप्त हो गया I तब गौकर्ण ने अपने परिवारजन के कल्याण हेतु श्रीमदभागवत महापुराण का पाठ किया और धुंधकारी जैसी पापी आत्मा को सद्गति प्राप्त कराई। कथा व्यास जी ने समझाया कि मानव जीवन का ध्येय ईश्वर प्राप्ति है, परंतु फिर भी मनुष्य अपने परम लक्ष्य को भूल सांसारिक कामनाओं को पूर्ण करने में अपने जीवन को लगा देता है और अंत में उसके पास मात्र पश्चाताप के कुछ नहीं बचता। गौकर्ण कथा भी हमें ये ही शिक्षा दे रही है कि यह समय तृष्णा को त्याग कृष्णा को प्राप्त करने का है। मंच पर उपस्थित दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य-शिष्याओं द्वारा भक्तिमयी मधुर भजनों को सुन सभी का मन आनंदित हो उठा।
साध्वी जी ने कहा कि श्रीमदभागवत पुराण मात्र कथाओं का संग्रह ही नहीं अपितु मानव जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान है। विज्ञान, अध्यात्म एवं भक्ति से परिपूर्ण इस अद्भुत पुराण को केवल एक ब्रह्मज्ञानी संत की कृपा से ही समझा एवं जीवन में उतारा जा सकता है। इस अवसर पर देवेंद्र प्रधान खुड़लिया, मास्टर करमबीर सिंह, भूपेंद्र शर्मा आदि मौजूद रहे।