
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज “पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991” से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस मामले में 12 दिसंबर 2024 को एक अंतरिम आदेश सुनाते हुए तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन शामिल थे, लेकिन इस बार केवल दो जज ही उपस्थित थे, जिसके कारण सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी। आज अदालत को सूचित किया गया कि केंद्रीय सरकार की ओर से इस महत्वपूर्ण मामले में अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट एक तरफ इस एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है और दूसरी ओर जमियत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और अन्य की याचिकाओं पर भी विचार कर रहा है, जिसमें इस एक्ट को सख्ती से लागू करने की मांग की गई है। आज जमियत उलेमा-ए-हिंद की ओर से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मंसूर अली खान और एडवोकेट नियाज़ अहमद फारूकी ने पक्ष रखा। जमियत के वकीलों ने सरकार की ओर से अब तक जवाब न दाखिल करने और चुप्पी साधने पर सवाल उठाए और जोर दिया कि सरकार को देश की एकता, इस मुद्दे की संवेदनशीलता और कानून की अनुसरण करते हुए जल्द से जल्द अपना जवाब दाखिल करना चाहिए। स्पष्ट रूप से इस एक्ट की धारा 4 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति वैसी ही बनी रहेगी जैसी उस दिन थी। इस कानून के संदर्भ में, 12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था, जिसमें पूजा स्थलों के खिलाफ नए मुकदमे और सर्वेक्षण आदेशों पर प्रतिबंध लगाया था। इस आदेश में यह भी कहा गया था कि लंबित मुकदमों में कोई प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश नहीं दिया जाएगा। इस आदेश के बाद देश में मस्जिदों और दरगाहों के खिलाफ सांप्रदायिक तत्वों की कोशिशों पर रोक लगी है, लेकिन यह भी सच है कि अलग-अलग बहानों से सांप्रदायिक तत्व और उनके समर्थक मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाते हैं, इसलिये इस मामले पर एक अंतिम निर्णय की सख्त जरूरत है, और साथ ही सरकार सहित सभी प्रभावशाली लोगों को एकजुट होने की आवश्यकता है।