पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से रोकने के लिए बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव अनिवार्य करने की मांग की

पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से रोकने के लिए बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव अनिवार्य करने की मांग की
पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से रोकने के लिए बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव अनिवार्य करने की मांग की

नई दिल्ली। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली सरकार ने पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पराली को जलने से रोकने लिए बायो डीकंपोजर घोल का छिड़काव अनिवार्य करने की मांग को लेकर याचिका दायर की है। याचिका के साथ बायो डीकंपोजर घोल के छिड़काव के प्रभाव से संबंधित बायो डीकंपोजर इंपैक्ट असेसमेंट कमेटी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट भी अटैच की गई है। उन्होंने कहा कि बायो डीकंपोजर के छिड़काव से पराली गल कर खाद में बदल जाती है और उसे जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। केंद्र सरकार जितना पैसा किसानों को मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी में देती है, उससे आधी कीमत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकारें बायो डीकंपोजर का निःशुल्क छिड़काव करा सकती हैं। पिछले दिनों पड़ोसी राज्यों में बड़े पैमाने पर पराली जलने की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा और इससे दिल्ली के लोगों की जिंदगी खत्म होती रही। कोरोना काल में पराली के प्रदूषण ने लोगों की जिंदगी पर हमला किया है।

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र की एयर क्वालिटी कमीशन के समक्ष लगाई याचिका के संबंध में आज डिजीटल प्रेस वार्ता की जानकारी दी। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली के लोगों को सांस लेने की तकलीफ में काफी बढ़ोतरी हो गई है। अगर हम नासा के चित्र को देखें तो जैसे-जैसे पराली के जलने की घटनाएं बढ़ती गईं, दिल्ली की हवाएं जहरीली होती गई। हम सबको पता है कि कोरोना का हमला हमारी सांसों पर है। कोरोना के हमले में पराली के धुएं ने जिस तरह से जहर घोला है, उससे आज दिल्ली के लोगों को जान के संकट का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में न सिर्फ दिल्ली की सरकार, बल्कि केंद्र सरकार और सभी लोगों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि इस पराली के धुएं के समाधान के लिए स्थाई तौर पर कदम बढ़ाएं, क्योंकि साल दर साल पराली की समस्या बढ़ती जा रही है और हम इसको टालते जा रहे हैं।

गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के साथ मिलकर पराली जलाने की जगह पराली गलाने का जो बायो डीकंपोजर तकनीक का प्रयोग किया गया है, वह काफी सफल रहा है। केंद्र सरकार द्वारा गठित एयर क्वालिटी कमीशन के सामने दिल्ली सरकार की तरफ से हमने कल याचिका दायर की है। याचिका में बताया है कि दिल्ली सरकार ने जो राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर बायो डीकंपोजर का प्रयोग किया है, वह काफी सफल रहा है। यह बात हम केवल अनुमान के आधार पर नहीं कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के साथ मिलकर पहले अवलोकन किया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद जाकर इस पूरी प्रक्रिया को समझा है। उसके बाद हमने निर्णय लिया कि दिल्ली के अंदर हम इसका प्रयोग करेंगे।

पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली के अंदर लगभग 2000 एकड़ में गैर बासमती धान की खेती होती है। दिल्ली में सरकार की तरफ से बायो डीकंपोजर का घोल तैयार कराया गया और दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अंदर 2 हजार एकड़ खेत निशुल्क इसका छिड़काव कराया। पूसा के वैज्ञानिकों के साथ छिड़काव के बाद हमने समय-समय पर इसका अवलोकन किया। पराली लगभग 15 से 20 दिनों में 90 से 95 फीसदी गल कर खाद में तब्दील हो गई। जहां पर छिड़काव किया था, वहां पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और हम लोगों ने खुद जाकर अवलोकन किया और किसानों से बात की। पूरी दिल्ली के अंदर इसका क्या प्रभाव रहा, इसका आंकलन करने के लिए 15 सदस्यीय डी-कंपोजर इंपैक्ट असेसमेंट कमेटी का गठन किया गया। जिसमें दिल्ली के पांच विधायक, कृषि विभाग के 5 अधिकारी और पूसा संस्थान के पांच वैज्ञानिकों को नियुक्त किया गया था। इस 15 सदस्यीय कमेटी ने नरेला, बवाना, मुंडका, नजफगढ़, बिजवासन सहित जहां पर धान की खेती होती है, उन अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा किया। अलग-अलग 25 गांव में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट की जांच की गई। कमेटी की तरफ से तैयार रिपोर्ट के साथ हमने कमीशन में याचिका दायर की गई है। कमीशन से अनुरोध है कि दिल्ली के अंदर इस तकनीक के प्रयोग को सफलता पूर्वक लागू किया गया है और इस के तीन प्रमुख पहलू हैं।

उन्होंने कहा कि पहली बात, पिछले कई सालों से केंद्र सरकार मशीनों को खरीदने के लिए सब्सिडी दे रही है। इसके बावजूद किसानों को पैसा लगाना पड़ता है और आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। इसकी वजह से किसान अंत में पराली जलाने के लिए मजबूर होते हैं। केंद्र सरकार जितना पैसा लगा रही है, उससे आधे दाम में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में सरकार की तरफ से निःशुल्क छिड़काव किया जा सकता है। इसमें किसानों को पैसा लगाने की जरूरत नहीं है और सरकार को यह जिम्मेदारी लेकर बायो डीकंपोजर का छिड़काव कराने की जरूरत है। जहां तक बायो डीकंपोजर के छिड़काव के प्रबंधन की बात है, तो पूसा के वैज्ञानिक, दिल्ली के अधिकारी और दिल्ली सरकार, जिन्होंने मिलकर प्रयोग किया है, वो सभी अन्य राज्य सरकारों को मदद करने को तैयार हैं। ताकि इसका सभी जगहों पर निशुल्क छिड़काव, आधे पैसे में किया जा सके। आज केंद्र सरकार जितना पैसा खर्च कर रही है, उससे आधे पैसे में ही निशुल्क छिड़काव हो सकता है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दूसरी बात, पराली को जलाने की जगह अगर बायो डीकंपोजर से गला दिया जाए तो इसका दोगुना फायदा होगा। प्रदूषण की मार से लोगों की जिंदगी को बचाया सकता है। साथ ही पराली गलने से जो कंपोस्ट खाद बनेगी, उससे खेत की उर्वरक क्षमता भी बढ़ेगी। तीसरी बात, इसकी मदद से साल दर साल से चली आ रही लाइलाज बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। दिल्ली सरकार ने कमीशन के सामने याचिका इस उम्मीद से लगाई है क्योंकि हमारे पास आज एक सस्ता और लाभकारी उपाय मौजूद है। कमीशन अभी से इसको लेकर निर्णय ले और सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार के लिए बायो डीकंपोजर का छिड़काव अनिवार्य किया जाए। कोरोना काल में यह जो अनचाही तबाही है और जिस तरह से पराली ने लोगों के जिंदगी के ऊपर हमला किया है उसे अगली बार तक जड़ से खत्म किया जा सके। पिछले 15 दिनों तक जिस तरह से पराली जलती रही और दिल्ली के लोगों की जिंदगी खत्म होती रही है। मुझे लगता है कि इसका समाधान हमें जिम्मेदारी पूर्वक करना चाहिए। इसी मांग को लेकर के हमने याचिका लगाई है। हमें उम्मीद है कि कमीशन इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करके निर्णय लेगा और सभी राज्यों को इसे लागू करने के लिए निर्देश देगा।