
महिलाओं का वर्तमान परिवेश
“नारी रंग गुलाल है, दीवाली का दीप”
भारत में महिलाओं की स्थिति में पिछले कुछ दशकों में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन अभी भी बहुत से सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुद्दे हैं जो उनकी स्वतंत्रता और समानता की दिशा में अड़चनें उत्पन्न करते हैं। महिलाएँ आज विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन वे आज भी कई प्रकार की असमानताओं और चुनौतियों का सामना करती हैं। भारत में पहले की तुलना में अब अधिक महिलाएं स्कूल और कॉलेज जाती हैं, और कई क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरकारी योजनाओं जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ ने इस दिशा में सकारात्मक प्रभाव डाला है। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा को लेकर अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि परिवारों की आर्थिक स्थिति और परंपरागत सोच। महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, जैसे मातृ मृत्यु दर, कुपोषण, और शारीरिक शोषण, अभी भी एक बड़ी समस्या हैं। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच है। हालांकि, अब सरकार और कई गैर-सरकारी संगठनों द्वारा महिला स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योजनाएँ और अभियान चलाए जा रहे हैं, जैसे स्वच्छता अभियान और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम।
“नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति”
– नारी समाज की कुशल वास्तुकार है
महिलाओं का रोजगार में हिस्सा बढ़ा है, और वे कई क्षेत्रों में सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। आज महिलाएँ राजनीति, विज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, और खेल जैसे क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रही हैं। हालांकि, महिलाएं अब भी आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर नहीं हैं। वे आमतौर पर कम वेतन पाती हैं और उनके लिए उच्च पदों पर पहुँचना कठिन होता है। भारत में अभी भी कई स्थानों पर महिलाओं को सामाजिक असमानता का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में महिलाओं को समाज में निम्न स्थान पर रखा जाता है, और उनके अधिकारों को महत्व नहीं दिया जाता। लिंग भेदभाव, बेटियों को कम महत्व देना, और महिलाओं के प्रति हिंसा जैसे मुद्दे समाज में व्याप्त हैं। हालांकि, महिलाओं के अधिकारों के लिए कई कानून बने हैं, जैसे ‘दहेज उत्पीड़न कानून’ और ‘महिला सुरक्षा अधिनियम’, लेकिन इनका प्रभाव हर जगह समान नहीं है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, जैसे घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, और तस्करी, भारत में गंभीर समस्याएँ बनी हुई हैं। बड़े शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण की कमी है। हालाँकि, सरकार और विभिन्न संस्थाएँ महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई कर रही हैं, फिर भी समस्याएँ जारी हैं। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में भी वृद्धि हुई है। कई महिलाएँ अब राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, कई महिला मुख्यमंत्री और मंत्री यह साबित कर चुकी हैं कि महिलाएँ राजनीति में प्रभावी नेतृत्व कर सकती हैं। इसके अलावा, पंचायतों और नगरपालिकाओं में भी महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान है, जिससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। भारत में महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाएँ मुख्यतः परिवार और घर तक सीमित थीं, लेकिन अब महिलाएँ उन पारंपरिक भूमिकाओं के अलावा सामाजिक, व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। महिलाएँ अब समाज में अपनी पहचान बनाने में सक्षम हैं, लेकिन कुछ हिस्सों में अभी भी परिवारिक दबाव, परंपराएँ और सांस्कृतिक बाधाएँ महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक बनी हुई हैं। भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन समानता की ओर जाने की यात्रा अभी भी लंबी है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए हमें समाज में और अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। महिलाओं को अपने अधिकारों का पूरा उपयोग करने का अवसर देने के लिए पारंपरिक सोच में बदलाव और कड़े कानूनों की आवश्यकता है।
मंजुला बिष्ट
प्रधानाध्यापिका
संदेश स्कूल