बादलों के आर-पार अंतरिक्ष से ली जा सकेगी स्पष्ट तस्वीरें

PU

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा पिछले दिनों भारत के नवीनतम पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ‘ईओएस-01’ (अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट) के सफलतापूर्वक लांच के साथ ही सफलता का एक और नया इतिहास रचा गया। इस महत्वपूर्ण उपग्रह प्रक्षेपण अभियान में इसरो द्वारा मुख्य सैटेलाइट के तौर पर भारत के ईओएस-01 के अलावा विदेशी ग्राहकों के नौ अन्य वाणिज्यिक उपग्रहों को भी भारत के पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल ‘पीएसएलवी-सी49’ के जरिये प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया। विदेशी उपग्रहों में अमेरिका के 4 लेमुर मल्टी मिशन रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट, लग्जमबर्ग के क्लेओस स्पेस द्वारा 4 मैरीटाइम एप्लीकेशन सैटेलाइट तथा लिथुआनिया का एक प्रौद्योगिकी डेमॉन्स्ट्रेटर उपग्रह शामिल थे। विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष विभाग के न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के साथ वाणिज्यिक समझौते के तहत लांच किया गया। ये सभी उपग्रह श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र में भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी49 से अंतरिक्ष की कक्षा में प्रक्षेपित किए गए। पीएसएलवी-सी49 ने दोपहर 3.12 बजे लिफ्टऑफ करने के बाद प्रत्येक 20 मिनट के अंतराल पर हर सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित किया।

पीसीएलवी का यह 51वां सफल मिशन था और इस मिशन के पूरा होने के साथ ही इसरो 328 विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में कामयाब हो गया है। इसरो द्वारा पीएसएलवी रॉकेट के जिस डीएल वैरिएंट का उपयोग किया गया, उसमें दो स्ट्रैप-ऑन बूस्टर मोटर्स थे। इस रॉकेट वैरिएंट का इस्तेमाल इसरो द्वारा पहली बार 24 जनवरी 2019 को ऑर्बिट माइक्रोसेट आर सैटेलाइट में किया गया था। अब यह भी जान लें कि भारतीय उपग्रहों के अलावा अंतरिक्ष में विदेशी उपग्रहों को भी सफलतापूर्वक स्थापित करने वाला पीएसएलवी क्या है? पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल) इसरो द्वारा संचालित एक ऐसी उन्नत प्रक्षेपण प्रणाली है, जिसे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया है। पीएसएलवी को भारतीयों उपग्रहों के अलावा विदेशी उपग्रहों की लांचिंग के अलावा भी उपयोग किया जाता रहा है। यह एक चार चरण/इंजन वाला ऐसा रॉकेट है, जो ठोस तथा तरल ईंधन द्वारा वैकल्पिक रूप से छह बूस्टर मोटर्स के साथ संचालित किया जाता है और शुरूआती उड़ान के दौरान उच्च गति देने के लिए पहले चरण पर स्ट्रैप होता है। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेज सकने में सक्षम है और पीएसएलवी की सहायता से अभी तक 70 से भी अधिक अंतरिक्ष यानों को विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किया जा चुका है।

तिरूवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) से दूर श्रीहरिकोटा में रॉकेट पोर्ट पर इसरो द्वारा रॉकेट सिस्टम का परीक्षण करने के लिए एक वर्चुअल लांच कंट्रोल सेंटर विकसित किया गया है। कोविड-19 महामारी फैलने के बाद श्रीहरिकोटा जाने वाले लोगों की संख्या को कम करने के उद्देश्य से इसरो द्वारा वीएसएससी में इस सेंटर को विकसित किया गया। वीएसएससी के निदेशक एस सोमनाथ के मुताबिक वीएसएससी में विभिन्न रॉकेट प्रणालियों का परीक्षण किया जा रहा है। श्रीहरिकोटा में रॉकेट पोर्ट पर लांच के लिए तीन रॉकेट तैयार हो रहे हैं, जिनमें से एक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान अर्थात् पीएसएलवी सी49 का अभी प्रक्षेपण किया गया है। इसके अलावा पीएसएलवी सी50 और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) भी इनमें शामिल हैं।

इसरो द्वारा इस साल जनवरी माह में पीएसएलवी सी48 के जरिये रीसैट-2बीआर1 को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था लेकिन कोरोना महामारी के कारण उसके बाद इसरो के सारे मिशन स्थगित रहे। महामारी के चलते इसरो के गगनयान, चंद्रयान-3 सहित 10 महत्वपूर्ण अभियान प्रभावित हुए। कोरोना काल के बाद अब इसरो का इस साल यह पहला रॉकेट लांच मिशन था। इस सफल उपग्रह प्रक्षेपण मिशन के बाद इसरो अब अगले माह अपने बहुप्रतीक्षित नए रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल का प्रथम प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहा है। दिसम्बर माह में पीएसएलवी सी50 और उसके बाद जनवरी-फरवरी 2021 में जीसैट-12 आर को अंतरिक्ष में छोड़े जाने की योजना है। दरअसल प्रत्येक सैटेलाइट लांच के बाद दूसरे लांच के लिए तैयारी में लगभग 30 दिनों का समय लगता है।

पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ‘ईओएस-01’ अर्थ ऑब्जर्वेशन रीसैट उपग्रह की ही एक एडवांस्ड सीरीज है। यह कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में प्रयोग किए जाने वाला पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है, जो अंतरिक्ष में भारत की तीसरी आंख साबित होगा। दरअसल ईओएस 01 एक ऐसा अग्रिम रडार इमेजिंग उपग्रह है, जिसका सिंथैटिक अपरचर रडार बादलों के पार भी दिन-रात तथा हर प्रकार के मौसम में स्पष्टता के साथ देख सकता है और इसमें लगे कैमरों से बेहद स्पष्ट तस्वीरें खींची जा सकती हैं। इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इस उपग्रह के जरिये न केवल सैन्य निगरानी में मदद मिलेगी बल्कि कृषि, वानिकी, मिट्टी की नमी मापने, भूगर्भ शास्त्र और तटों की निगरानी में भी यह काफी सहायक साबित होगा। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी इसका बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा। भारत के दुश्मन पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान की सीमा के आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने में यह उपग्रह इन्हीं खूबियों के चलते भारतीय सेना के लिए बेहद मददगार साबित होगा। इसकी मदद से सेना हर तरह के मौसम में दिन-रात दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रख सकेगी। -योगेश कुमार गोयल-