एक और मैरी कॉम

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ओलंपिक पदक का रंग 4 अगस्त को तय होगा, लेकिन भारत की एक और होनहार बेटी लवलीना बोरगोहेन ने एक और पदक पक्का कर दिया है। दुनिया के महान मुक्केबाज मुहम्मद अली की फैन लवलीना ने मुक्केबाजी में परचम लहरा कर अपने आदर्श को चरितार्थ किया है। उन्होंने चीनी ताइपे की चिन चेन को 4-1 से परास्त किया और सेमीफाइनल में पहुंचीं। 2012 के लंदन ओलंपिक्स में एम.सी.मैरी कॉम भी सेमीफाइनल तक पहुंची थीं, लेकिन अपने से लंबी खिलाडि़न के पार नहीं जा सकी थीं, लिहाजा कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। लवलीना के संदर्भ में देश की उम्मीदें स्वर्ण या रजत पदक पर टिकी हैं। मुक्केबाजी फेडरेशन के अध्यक्ष अजय सिंह का विश्लेषण है कि लवलीना भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतेगी। हम भी खेलों में एक नया इतिहास रचे जाने की प्रतीक्षा में हैं। लवलीना 69 किलोग्राम भार-वर्ग में खेलती हैं। लंबा कद उनका एक पैना हथियार है। वह दूरी पर रहकर विरोधी खिलाड़ी पर मुक्कों की बौछार कर सकती हैं। टोक्यो के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में लवलीना ने यही रणनीति अपना कर जीत हासिल की।

हालांकि ओलंपिक से पहले के कुछ मुकाबलों में लवलीना चिन चेन से पराजित हो गई थीं, लेकिन इसी का नाम ओलंपिक है। कई उलटफेर हुए हैं। नामी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वरीयता वाले, नंबर वन तक खिलाड़ी हार रहे हैं। छह बार की विश्व चैंपियन मैरी कॉम भी अब उसी जमात में शामिल हैं। हालांकि उन्होंने निर्णायकों के गलत फैसले पर सवाल उठाए हैं, लेकिन तय नियमानुसार फैसले की समीक्षा नहीं की जा सकती। उसे चुनौती भी नहीं दी जा सकती। मैरी कॉम ने सवाल उठाकर टोक्यो ओलंपिक्स के भीतर की आपत्तिजनक गतिविधियों की ओर भी संकेत किए हैं। हम निर्णय को मैरी कॉम का दुर्भाग्य मानकर आगे बढ़ना चाहते हैं। इस प्रकरण को भुला देना चाहते हैं। हम खेल-भावना के समर्थक और पक्षधर हैं। पराजित होने के बावजूद मैरी कॉम भारत के लिए ‘सार्वकालिक चैंपियन’ हैं, जिन्होंने मुक्केबाजी की एक परंपरा को खेल का पाठ सिखाया। मुक्केबाजों की नई पीढ़ी को प्रेरणा दी। आज की विजेता लवलीना भी मैरी कॉम की ही विरासत हैं। लवलीना ने मैरी को ही जीवंत कर दिया है। मैरी कॉम मणिपुर की हैं, तो लवलीना पूर्वोत्तर में ही असम की प्रथम मुक्केबाज हैं, जो ओलंपिक तक पहुंचीं और पहले ही ओलंपिक में ‘तिरंगा’ लहरा-फहरा दिया। भारत की खिलाडि़न बेटियों का उल्लेख लगातार किया जाना चाहिए, मीडिया भी सनसनी के बजाय देश की नायिकाओं पर गौर करे और उन्हें सुर्खियां बनाए, क्योंकि उन्होंने ही देश का नाम गर्वोन्नत किया है। भारोत्तोलन में चानू बिटिया ने रजत पदक जीतकर शुरुआत की और अब पूर्वोत्तर की ही लवलीना ने पदक तय कर दिया है। लवलीना ने इतिहास रचा है और इसका नया अध्याय भी खुलने वाला है। उन्होंने 2018 और ’19 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता था। बचपन से ही उन्होंने खेलना शुरू कर दिया था। बीते 11-12 साल से वह लगातार खेल रही हैं। उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वह 24 साल की युवा हैं। उनमें जोश, रवानगी, गति और आक्रमण सब कुछ है। लवलीना मुक्केबाजी की नई ‘सुपर स्टार’ हैं। वह दूसरी मैरी कॉम साबित हो सकती हैं। बेटियों की बात करें, तो अभी बैडमिंटन में पीवी सिंधु, तीरंदाजी में दीपिका कुमारी, कुश्ती में फोगाट आदि के मुकाबले भी शेष हैं। वे भी पदक की जबरदस्त दावेदार हैं और विश्व चैंपियन स्तर की खिलाड़ी हैं। हॉकी में बेटियों ने ऑयरलैंड को हरा कर जीत का सिलसिला शुरू किया है। बेशक मंजि़लें अभी दूर हैं। बहरहाल ओलंपिक पर निगाहें गड़ाए रखें। भारत की झोली भी भरकर लौटेगी। ओलंपिक को खेलों का महाकुंभ कहा जाता है। इतने बड़े खेल आयोजन में जीत बड़े मायने रखती है। अब तक विकसित देश ही ज्यादातर पदक जीतते रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे विकासशील देशों के खिलाड़ी भी अपना दमखम दिखाने लगे हैं। आशा है भारत और अन्य विकासशील देश इस बार पदक तालिका में जरूर चमकेंगे।