फोर्टिस गुरुग्राम ने इंडियन एकेडमी ऑफ पिडियाट्रिक्स तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, हरियाणा के साथ मिलकर पिडियाट्रिक कैंसर के शीघ्र निदान और समय पर उपचार शुरू करने के बारे में बढ़ायी जागरूकता


15 फरवरी – अंतरराष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस (आईसीसीडी)



गुरुग्राम: अंतरराष्ट्रीय बाल कैंसर दिवस (आईसीसीडी) के मौके पर, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने इंडियन एकेडमी ऑफ पिडियाट्रिक्स तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (हरियाणा) के साथ मिलकर, पिडियाट्रिक कैंसर (बच्चों को प्रभावित करने वाले कैंसर) के शीघ्र निदान और समय पर उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से आज यहां मीडिया ब्रीफिंग का आयोजन किया। इस दौरान, ‘बाल कैंसर के 10 शुरुआती लक्षणों’ के बारे में एक पोस्टर जारी किया गया जिसकी मदद से आरंभिक लक्षणों की पहचान करने और उपचार के परिणामों में सुधार संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस पोस्टर को डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टर एवं हेड ऑफ पिडियाट्रिक्स हेमेटोलॉजी, हेमेटो ओंकोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ अजय अरोड़ा, प्रेसीडेंट, आईएमए, गुरुग्राम, डॉ महावीर जैन, प्रेसीडेंट, आईएमए, हरियाणा, डॉ राहुल भार्गव, प्रिंसीपल डायरेक्टर एंड चीफ, बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ अरुण दनेवा, सीनियर कंसल्टेंट, पिडियाट्रिक हेमेटो-ओंकोलॉजी एंड बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ सोहिनी चक्रबर्ती, सीनियर कंसल्टेंट, पिडियाट्रिक हेमेटो-ओंकोलॉजी एंड बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ स्वाति भयाना, कंसल्टेंट, पिडियाट्रिक ओंकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ सुनीशा अरोड़ा, कंसल्टेंट, पिडियाट्रिक ओंकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, यश रावत, फेसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, डॉ नीलम मोहन, नेशनल प्रेसीडेंट-इलेक्ट, आईएपी, डॉ राज मेहता, सचिव, आईएपी, हरियाणा, डॉ अनिल मलिक, प्रेसीउेंट, आईएपी, पलवल तथा डॉ सुमित, सचिव, आईएपी, गुरुग्राम की उपस्थिति में जारी किया गया। डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टर एवं हेड ऑफ पिडियाट्रिक्स हेमेटोलॉजी, हेमेटो ओंकोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम, ने कहा, “पिडियाट्रिक कैंसर प्रमुख ग्लोबल हेल्थ चैलेंज बन चुका है, और भारत में ही हर साल करीब 50,000 बाल कैंसर के मामले सामने आते हैं। शुरुआती चरण में रोग का पता लगने, सही निदान होने और उपयुक्त उपचार से कैंसरग्रस्त बच्चों के जीवित रहने की संभावना को बेहतर बनाया जा सकता है।परिवार और प्राथमिक देखभाल करने वाले चिकित्सक ही शुरुआती स्तर पर रोग के लक्षणों पर नज़र रखने और रोग का पता लगाने में अहम् भूमिका निभा सकते हैं। यदि कोई बच्चा लंबे समय तक बुखार, त्वचा में पीलापन, आलस्य, अकारण रक्तस्राव (जैसे कि पेशाब में खून), आसानी से खरोंच आदि लगने, या छोटे आकार के लाल धब्बे अथवा रैश उभरने, जैसे लक्षणों के साथ दिखायी दे तो पेरेंट्स को बिना देरी किए मेडिकल जांच करवानी चाहिए। रोग के निदान में देरी से भारत में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चुनौती बढ़ सकती है, क्योंकि कई ऐसे कैंसर रोगों की आरंभिक चरण में अनदेखी हो जाती है जिनका अन्यथा उपचार संभव होता है। इन प्राइमरी केयर फिज़िशियंस को भी बच्चों में कैंसर के लक्षणों के शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूक बनाना जरूरी है।” डॉ नीलम मोहन, नेशनल प्रेसीडेंट-इलेक्ट, आईएपी, ने कहा, “कैंसर एक साल से अधिक उम्र के बच्चों की असमय मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। बच्चों में कैंसर के लक्षण कई बार अस्पष्ट होते हैं और अन्य कई बाल्यावस्था के रोगों से मेल खाते हैं।पिडियाट्रिक ओंकोलॉजी में प्रगति के बावजूद, कैंसर आज भी बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण है। इसलिए जल्द से जल्द बाल कैंसर का पता लगाना महत्वपूर्ण होता है ताकि मृत्यु दर को कम रखा जा सके। इसीलिए, यह अभियान इलाज में देरी की वजह से बच्चों को तकलीफ से बचाने पर ज़ोर देता है।उल्लेखनीय है कि कैंसरग्रस्त बच्चों में 80% मामलों में उपचार संभव है।” डॉ महावीर जैन, प्रेसीडेंट, आईएमए, हरियाणा तथा डॉ अजय अरोड़ा, प्रेसीडेंट, आईएमए, गुरुग्राम, डॉ महावीर जैन, प्रेसीडेंट, आईएमए, हरियाणा ने कहा, “बचपन ही वह दौर होता है जब बच्चे बिना किसी चिंता या परेशानी के जीवन का भरपूर आनंद ले सकते हैं, यह किसी चुनौती से जूझने का समय नहीं होता। हम जानकारी और मेडिकल प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग देकर, कैंसर से पीड़ित बच्चों को जिंदगी जीने का बेहतर मौका दिला सकते हैं। आइये हम हरियाणा समेत अन्य भागों में इस रोग के शीघ्र निदान को वास्तविकता बनाएं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डायग्नॉसिस में देरी की वजह से कोई बच्चा तकलीफ सहने को मजबूर न हो। बच्चों को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कैंसर में ल्यूकीमिया, ब्रेन ट्यूमर, लिंफोमास और ठोस ट्यूमर जैसे न्यूरोब्लास्टोमा तथा विल्म्स ट्यूमर प्रमुख हैं। बच्चों के कैंसर के रिस्क फैक्टर में प्रायः परिवार में पहले से कैंसर रोग होना, रेडिएशन एक्सपोज़र या कुछ खास तरह की जेनेटिक कंडीशंस प्रमुख हैं।”

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