-अशोक भाटिया-
देश के लगभग सभी प्रदेशों में विरोधी दल के नेताओं को भाजपा के सत्ता के रथ की सवारी लगातार नजर आ रही हैं। कहीं चुनाव से पहले, कहीं चुनाव के मौके पर, कहीं चुनाव के बाद. भाजपा में दूसरी पार्टियों से शामिल होने की होड़ लगातार नेताओं में देखी जा सकती है। चाहे वह नेता अपनी पार्टी में कितना ही बड़ा क्यों ना हो. नेताओं को अब अपना भविष्य भाजपा में सुरक्षित दिखता है।
दूसरा भाजपा या यह कहें कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति दूसरी पार्टी के कद्दावर नेताओं को भाजपा में शामिल करवाने के पीछे यह भी है कि, जो भी नेता दूसरी पार्टी से आएगा वो कुछ न कुछ वोट अपने साथ लाएगा, क्योंकि उनका व्यक्तिगत वोट बैंक भी होता है। जिससे पार्टी में वोट बढ़ेंगे ही और एक मैसेज यह भी जाएगा कि, हारने वाली पार्टी को ही अकसर नेता छोड़ते हैं, वह जीतने वाले की तरफ जाते हैं तो नेताओं के आने से जनता को यह लगेगा कि भाजपा जीतने वाली पार्टी है और भविष्य भी इसी का है।
हालांकि विपक्ष इस तरीके से भाजपा में शामिल करवाने की रणनीति को ठीक ना मानते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि भाजपा ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवा रही है जिनको लेकर पहले वह कई तरह के आरोप जिनमें भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल हैं, लगाती रही है और खुद भ्रष्टाचार मुक्त की बातें करती है। इसे कहीं ना कहीं भाजपा में भी आतुरता दिखती है। भाजपा कितनी बड़ी-बड़ी बातें करे कि वह बहुत बड़ी और मजबूत पार्टी है, उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी है, लेकिन दूसरी पार्टी के नेताओं के सहारे वह चुनाव जीतना चाहती है।विपक्ष यह भी याद दिलाता है कि कैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहीं रीता बहुगुणा को चुनाव जीतने की खातिर पार्टी में शामिल किया। रीता बहुगुणा एक समय में भाजपा की घोर विरोधी रही हैं। भाजपा के नेता रीता बहुगुणा एक दूसरे को ढेरों गालियां दिया करते थे।
कुछ ऐसा ही उदाहरण एसएम कृष्णा का दिया जा रहा है। जिनके मुख्यमंत्री रहते भाजपा ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी थी. यहां तक कि जब उन्होंने विदेश मंत्री रहते दूसरे देश के मंत्री का भाषण पर दिया था. उनकी भूल का प्रधानमंत्री मोदी ने खूब मजाक उड़ाया था। अब वही एसएम कृष्णा बीजेपी परिवार का हिस्सा है। कुछ इसी तरह ही उत्तराखंड में विजय बहुगुणा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा ने मुख्यमंत्री से उनके इस्तीफे की मांग की थी और जोरदार विरोध भी किया था। लेकिन उसी विजय बहुगुणा को उत्तराखंड चुनाव के पहले पार्टी में शामिल करवाया और उनके बेटे को टिकट भी दिया। इसी तरह उत्तराखंड में कांग्रेस के दूसरे नेता हरक सिंह रावत और अध्यक्ष पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य को भी भाजपा ने शामिल कर उत्तराखंड में जीत सुनिश्चित करने की कोशिश की। ठीक इसी प्रकार गोवा में जब भाजपा को चुनाव में बहुमत नहीं मिला तो दूसरी पार्टी के नेताओं का सहारा लेकर सरकार बनाई। इतना ही नहीं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे जो हमेशा भाजपा के निशाने पर रहते थे, उनके विधायक बेटे को पहले विधायक पद से इस्तीफा दिलवाया जिससे कांग्रेस की संख्या कम हो और भाजपा को सदन में कंफर्टेबल बहुमत रहे और उसके बाद विश्वजीत राने को भाजपा ने अपना बना लिया।लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा ने यही रणनीति चली थी जिसमें वह सफल हुई थी। उसी प्रकार राज्यवार रणनीति पर भाजपा आगे बढ़ी और उसे सफलता मिलती चली गई।
यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अमित शाह संगठन और चुनावी रणनीति में माहिर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी रणनीति को लेकर अमित शाह की पीठ थपथपाई है। राज्यवार इसी रणनीति पर आगे बढ़ते जा रहे हैं और उनका यही मानना है कि पार्टी में जो भी शामिल होगा भाजपा परिवार उससे बढेगा। बिहार की शानदार जीत के बाद भाजपा की नज़र अब बिहार पर है जहाँ अगले 6 महीनों में चुनाव है। अमित शाह हर महीने बिहार का दौरा कर पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं।वहां ममता का किला ढाहने के लिए ममता के कई सिपहसालारों पर नज़र है।
हाल ही में प. बंगाल की राजनीति में परिवहन मन्त्री श्री सुवेन्दु अधिकारी ने अपने पद से इस्तीफा देकर वह तूफान खड़ा कर दिया है जिसकी आहट पिछले कई महीनों से सुनाई पड़ रही थी। राज्य की ममता दी नीत तृणमूल कांग्रेस सरकार के लिए इसे जबर्दस्त झटका माना जायेगा क्योंकि सुवेन्दु अधिकारी कूटबिहार व आसपास के कई जिलों के लोकप्रिय व प्रभावशाली नेता हैं। अब ऐसा माना जा रहा है कि वह अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पूर्व भाजपा में शामिल हो जायेंगे। यदि ऐसा होता है तो वह तृणमूल कांग्रेस के ऐसे दूसरे कद्दावर नेता होंगे जो ममता दी का साथ छोड़ कर भाजपा का दामन थामेंगे। उनसे पहले एक जमाने में ममता दी का दायां हाथ समझे जाने वाले मुकुल राय ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। मुकुल राय के तृणमूल छोड़ कर भाजपा में जाने से ममता दी को गहरा धक्का लगा था क्योंकि श्री राय ने प. बंगाल में भाजपा की पैठ बनाने में रणनीतिक भूमिका निभाई थी। विगत 2019 के लोकसभा चुनावो में राज्य में भाजपा को जो सफलता मिली उससे बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों का ‘पंचाग’ गड़बड़ा गया था। अब सुवेन्दु अधिकारी के विद्रोह से आगामी विधानसभा चुनावों मे ऊंट किस करवट बैठेगा इसके बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि राज्य में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर होगा।