उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) भ्रष्टाचार को रोकने के लिए चाहे कितने भी कम उठा ले किंतु सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत है। भ्रष्ट अधिकारी आये दिन अपने किसी ना किसी कारनामों को लेकर सरकार को गुमराह कर छवि धूमिल करते नजर आ रहे हैं। जिसकी बानगी जनपद हापुड़(Hapur) में देखने को मिली, जहां शासकीय अधिवक्ता ने नियम-कानून को तांक पर रखकर जिले के शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) का पद प्राप्त कर लिया। इस पद को प्राप्त करने के लिए शासकीय अधिवक्ता (Advocate) ने नियम और कानून को ताकत पर रखकर करीब चार वर्षो तक सरकार को राजस्व का चुनाव लगाता रहा।
कानून के जानकारों का कहना है कि इस पद को पाने के लिए उन्होंने सारे तथ्य छुपाते हुए विधि विरुद्ध कार्य किया। जब इस प्रकरण की शिकायत 6 जून को जिलाधिकारी हापुड़ ने अपनी रिपोर्ट न्याय विभाग को भेजी तो, जिलाधिकारी द्वारा भेजी गई इस रिपोर्ट में खुलासे के न्याय विभाग में हड़कंप मच गया और आनन—फानन में हापुड़ शासकीय अधिवक्ता को उनके पद से हटाने के लिए वैधानिक कार्यवाही शुरू कर दी।
क्या है पूरा मामला
शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) पद के लिए 28 जुलाई 2017 को आवेदन किया था। जिसके आधार पर 26 फरवरी 2020 को कृष्णकांत गुप्ता को शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) के पद पर नियुक्ति की गई। आरोप है कि उनके द्वारा जानबूझकर पद प्राप्त करने के लिए अपने आवेदन पत्र में विधि व्यवसाय से होने वाली आय के संबंध में गलत जानकारी प्रस्तुत की। जांच रिपोर्ट के अनुसार, वास्तविकता यह है कि जिस समय उनके द्वारा शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) के पद के लिए आवेदन किया गया था उस समय वह स्वर्ग आश्रम रोड स्थित राधिका पैलेस नामक बरातघर फर्म में प्रोपराइटर के रूप में अपना निजी व्यवसाय कर रहे थे। जिसके आधार पर उन्होंने एक बैंक में अपना एकाउंट भी खोल रखा है। जिसकी आयकर रिटर्न में भी इस बात की पुष्टि हुई है। व्यवसाय के संबंध में उनके द्वारा नगर पालिका परिषद हापुड़ से लाइसेंस प्राप्त किया गया और समय समय पर वह लाइसेंस रिन्यू भी कराते रहें। राधिका पैलेस नामक बरातघर फर्म से होने वाले मुनाफे को दर्शाया है ना कि विधि व्यवसाय से होने वाली आय को। इससे स्पष्ट है कि जिस समय उन्होंने शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) पद के लिए आवेदन किया था। उस समय उनकी विधि व्यवसाय से कोई आय नहीं हो रही थी। प्रकरण से साफ है कि शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) जैसे गरीमामयी पद को पाने के लिए तत्थयों को छिपाया गया। अगर आवेदन के समय ही सबंधित प्रपत्रों की गहनता से जांच की गई होती तो उक्त व्यक्ति कृष्णकांत गुप्ता को शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) के पद पर आसीन होने से रोका जा सकता था। इस प्रकरण में जानकारी के लिए न्याय विभाग के संबंधित अधिकारी से बात की गई तो इस प्रकरण में मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा करवाई सुनिश्चित कर डीएम प्रेरणा शर्मा को पत्र भेजकर कृष्णकांत गुप्ता को शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) के पद से हटाने की कार्यवाही की जा चुकी है वही न्याय विभाग के अधिकारी का कहना है कि कृष्णकांत गुप्ता को शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) से विभागीय जांच कर वसूली व कानूनी कार्यवाही की तैयारी कि जा रही है।
क्या कहा कृष्णकांत गुप्ता ने
कृष्णकांत गुप्ता का आरोप है कि अवैध कार्य करने वालों ने मेरी शिकायत की थी। यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है। कोई अधिवक्ता क्या करता है, यह बार काउंसिल का मामला है। मुझे पद से हटाए जाने की कोई सूचना नहीं है। यदि ऐसा है तो मैं जल्द ही बहाल हो जाऊंगा।
क्या कहा जिलाधिकारी ने
डीजीसी क्राइम को हटाने का पत्र शासन से प्राप्त हुआ है। उनके खिलाफ एक सामान्य शिकायत थी। रिपोर्ट हमने शासन को भेजी थी। उसमें बहुत गंभीर अनियमितता नहीं थी। अब शासन से उनको हटाने का पत्र प्राप्त हुआ है। लेकिन, उसमें की गई शिकायत और जांच के बारे में कुछ नहीं लिखा है।